Friday, 21 January 2011


कहानी
कहानी:धोबी घाट मुंबई में रह रहे अलग-अलग परिवेश के चार लोगों की कहानी है। फिल्म का हर किरदार अपने मकसद को पूरा करने के लिए एक दूसरे से जुड़ता है।अरुण(आमिर)एक जाना माना पेंटर अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए साई(मोनिका डोंगरा)से रिश्ता जोड़ता है जो कि पेशे से एक बैंकर और पार्टटाइम फोटोग्राफर है। वहीं धोबी मुन्ना(प्रतीक बब्बर)मोनिका से इसलिए जुड़ता है क्योंकि उसे लगता है वह उसकी हीरो बनने में मदद कर सकती है। वहीं साई (मोनिका) मुन्ना के जरिए अरुण(आमिर)से जुड़े रहना चाहती है। इनकी जिंदगी में अपने मकसद को पूरा करने के लिए क्या उतार चढ़ाव आते हैं। इसी को बयां करती है धोबी घाट।
स्टोरी ट्रीटमेंट:उम्मीदें तब और बढ़ जाती हैं जब आमिर खान के प्रोडक्शन में बनी किसी फिल्म की बात की जाए|खासकर जब उनकी पत्नी किरण राव ने निर्देशन की कमान संभाली हो|धोबी घाट एक खास दर्शक वर्ग को ध्यान में रखकर बनाई गई है|किरण राव का निर्देशन काबिले तारीफ है मगर फिल्म का स्क्रीनप्ले प्रभावशाली नजर नहीं आता|फिल्म में मुंबई की बेहतरीन लोकेशंस का भरपूर इस्तेमाल किया गया है और कुछ संवाद भी अत्यंत प्रभावशाली हैं|फिल्म की गति काफी धीमी है मगर फिल्म में सभी कलाकारों का अभिनय जानदार है|

निर्देशन:किरण राव ने चार लोगों की जिंदगी में आ रहे बदलाव को बड़ी खूबसूरती से दर्शाने की कोशिश की है|फिल्म के क्लाइमेक्स में आमिर के रोने वाला दृश्य दिल को छू जाता है|आमिर यह सच्चाई जानकर रो पड़ते हैं कि यास्मिन ने अपने पति की यातना से तंग आकर अपनी जान दे देती है| एक सीधे साधे युवक से अचानक प्रतीक के केरेक्टर में बदलाव आता है और वह गुस्सैल युवक बन जाता है जो अपने भाई के हत्यारों को मारने तक पर उतारू हो जाता है|

स्टार कास्ट:सभी कलाकारों की बेहतरीन अदाकारी ही इस फिल्म का प्लस पॉइंट है|आमिर किरण की उम्मीदों पर पूरी तरह खरे उतरे हैं,जिनका यह दावा था की आमिर की बराबरी कोई नहीं कर सकता|उन्होंने एक पेंटर की भूमिका में जान डाल दी है|प्रतीक बब्बर और मोनिका डोंगरा ने भी बढ़िया अभिनय किया है|वहीं यास्मिन बनी कृति मल्होत्रा के अभिनय की जितनी तारीफ की जाए कम है|

म्यूजिक/सिनेमाटोग्राफी/डायलॉग्स:फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर मधुर है और फिल्म की थीम के हिसाब से बिलकुल फिट बैठता है|सिनेमाटोग्राफी अव्वल श्रेणी की है और फिल्म के कई संवाद आपको सोचने पर मजबूर कर देते हैं|

क्यों देखें:अगर आप कोई सीरियस और गंभीर फिल्म देखने की ख्वाहिश रखते हैं तो धोबी घाट आपके लिए ही है|
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Saturday, 15 January 2011

Yamla Pagla Dewana


कहानी: 'यमला पगला दीवाना' मुख्य रूप से कनाडा में रह रहे परमवीर सिंह (सनी देओल) की कहानी है, जो कनाडा में अपनी मां (नफीसा अली), फिरंगी बीवी और दो बच्चों के साथ रहते हैं। जैसे फिल्म आगे बढ़ती है कहानी बनारस और पंजाब की ओर मुड़ जाती है। परमवीर अपने पिता धर्मवीर (धर्मेंद्र) जिसने उनको और उनकी मां को छोड़ दिया था और उनके छोटे भाई गजिन्द्र (बॉबी देओल) को अपने साथ लेकर चले गए थे को बहुत याद करता है। परमवीर उनकी खोज में लग जाता है और अंत में उसे एक सुराग मिलता है कि दोनों बनारस में हैं। यह पता चलते ही परमवीर बनारस के लिए निकल लेता है। उन दोनों को घर वापस लाने के लिए वो धरम-गजिंद्र के गैंग में शामिल हो जाता है और उनको अपने संबंधों की सच्चाई बताता है। लेकिन, धरम उसकी बात मानने से मना कर देता है इसके बाद परमवीर अपने परिवार को कैसे एक करता है यह देखने लायक होगा।

रिव्यू: देओल परिवार एकबार फिर परदे पर धमाल मचाने की खातिर वापसी कर चुके हैं। अगर 'अपने' ने आपकी आंखों में आंसू लाए होंगे तो 'यमला पागल दीवाना' आपको हंसा- हंसा कर सच में पागल बना देगी। यह उन फिल्मों में से है जो अपने रिलीज होने से पहले ही अपनी पहचान बना चुकी होती हैं। धर्मेंद्र और बॉबी देओल की कॉमिक-टाईमिंग तो शानदार है ही लेकिन जब उसमें सनी भी मिल जाते हैं तो वो देखने लायक होता है। अगर सनी अपने भावनात्मक अभिनय और मार-धाड़ के सीन में बेहतर हैं तो धर्मेंद्र और बॉबी पिता-पुत्र के संबंधों में काफी सहज नजर आते हैं। बनारस के घाटों से लेकर पंजाब के हरे-भरे खेत फिल्म को रंगीन बनाते हैं। इस फिल्म से शुरूआत करने वाली कुलराज रांधवा अपने रोमांटिक रोल और अभिनय के दम पर फिल्म को एक नया आयाम देती नजर आती हैं।

स्टोरी ट्रीटमेंट: 'यमला पागल दीवाना' बहुत ही साधारण कहानी है। लेकिन जिस प्रकार इस पर काम किया गया है वो इसे देखने लायक बनाता है। निर्देशक समीर ने पहले भाग में कहानी की पृष्ठभूमि को दिखाने में काफी समय लिया है लेकिन दूसरे भाग में उन्होंने कॉमिक दृश्यों का ऐसा संयोजन किया है जो आपको इतना हंसाएगा कि आपके पेट में दर्द होने लगे। फिल्म में एक तरफ सनी की प्रसिद्ध फाईट सीक्वेंस है जहां उनकी तेज आवाज ही उनके दुश्मनों को डराने के लिए काफी साबित होती है तो दूसरी ओर बॉबी अपनी आंखों की चमक और अपनी आवाज में मजाकिया बदलाव की मदद से आपका ध्यान खींचते नजर आते हैं। फिल्म का हर सीन दूसरे भाग में एक ट्विस्ट पैदा करता है जो फिल्म को देखने लायक बनाता है।

स्टार कास्ट: धर्मेंद्र और बॉबी के बीच की केमिस्ट्री फिल्म देखते समय सुकून दिलाती है। बॉबी की डॉयलॉग डिलीवरी इस फिल्म में किसी सर्प्राइज से कम नहीं है। सनी अपने अभिनय के विभिन्न आयामों के आधार पर सदाबहार नजर आते हैं। अनुपम खेर ने अपना रोल काफी बेहतर ढंग से निभाया है। ठीक इसी प्रकार नवोदित कलाकार कुलराज रांधवा ने भी शानदार अभिनय किया है। हालांकि फिल्म में नफीसा अली का रोल काफी छोटा है पर उन्होंने अपना रोल बखूबी अदा किया है।

डायरेक्शन: फिल्म की क्रिएटिव ओपनिंग ही बता देती है कि समीर हमें आगे क्या दिखाना चाहते हैं। 'यमला पागल दीवाना' में कई ऐसे सीन मिल जाएंगे जो आम जिंदगी में देखने को मिल जाती हैं। फिल्म की लंबाई पर ध्यान नहीं देना चाहिए क्योंकि समीर ने तीन बड़े सितारों को एक साथ परदे पर लाने की कोशिश की है। फिल्म हालिया ब्लॉकबस्टर फिल्म 'दबंग' की भी याद दिलाती है लेकिन कुल मिलाकर अच्छा मनोरंजन प्रस्तुत करती है।

म्यूजिक/सिनेमाटोग्राफी/संवाद: फिल्म का संगीत कर्णप्रिय है, फिल्म का टाइटिल सांग ही फिल्म की यूएसपी है। फिल्म के दूसरे गाने भी काफी बेहतर हैं भले ही वह रोमांटिक गीत हों या फिर आइटम नंबर। फिल्म की सिनेमाटोग्राफी शानदार है पंजाब और बनारस की खूबसूरती काफी सलीके से कैप्चर किया गया है। फिल्म में कई स्पेशल इफैक्टों का भी इस्तेमाल किया गया है। फिल्म के संवाद दिमाग में छा जाने वाले हैं जबकि उसमें इस्तेमाल की गई पंजाबी बोली सोने पर सुहागा की तरह लगती है।

3 अप्स और 3 डाउन: फिल्म के तीनों शक्तिशाली कलाकार ही फिल्म की सबसे बड़ी यूएसपी हैं। फिल्म का बेहतर संगीत है और शानदार संवाद भी किसी से कम नहीं है। सनी देओल के ऊपर फिल्माए गए फाईट सीक्वेंस एक बार तो जरूर देखने वाले हैं। हालांकि फिल्म की लंबाई उसकी सबसे बड़ी खामी है जो कुछ जगहों पर बोर करती है। पहले भाग को लंबा खिंचना भी अजीब लगता है। फिल्म का संपादन भी और बेहतर ढंग से किया जा सकता था।
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